आज के दिन साल 1984 में यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड में रात को करीब 12 बजे, एक ऐसा वाकया हुआ, जिसे दुनिया में अब तक का सबसे बड़ा इंडस्ट्रियल डिजास्टर कंसीडर किया गया है। उस रात कुछ वर्कर्स ने केमिकल की एक स्ट्रांग स्मेल फील की और उन्हें लगा कि उनकी आंखें जलने लगी हैं। एग्जामिन करने के बाद, पता चलता है कि एक येलोइश लिक्विड लीक हो रहा था। हायर मैनेजमेंट को इसके बारे में बताया गया, लेकिन उन्हें लगा कि इतने बड़े प्लांट में एक छोटी लीकेज होना, कोई बड़ी बात नहीं। और इसे नजरअंदाज किया गया, यह सोचकर कि कुछ देर बाद इसे रिजोल्व कर लेंगे। लेकिन विद इन 40 टू 45 मिनट, गैस पूरी इंडस्ट्री और अगले 2 घंटे में पूरे भोपाल में फैल गई। लोग अपनी जिंदगी बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगे, लेकिन अगले 2 दिनों में इन्सेक्टिसाइड फैक्ट्री की इस लीकेज की वजह से, न सिर्फ हजारों लोगों की मौत हुई, बल्कि पूरे भोपाल में मरे हुए जानवरों के बिखरे शव, पानी में मरी हुई मछलियां और सूखे, मुरझाए पेड़ दिखे। इसी दिन की याद में आज भारत, National Pollution Control Day मना रहा है। हर साल 2 दिसंबर को, National Pollution Control Day मनाया जाता है, जो भोपाल गैस ट्रेजेडी जैसे disasters को रोकने के लिए अवेयरनेस के अलावा pollution के ह्यूमन हेल्थ पर पड़ने वाले इफेक्ट को highlight करता है। साल 2020 के एक सर्वे के अकॉर्डिंग दुनिया के टॉप 14 सबसे ज्यादा पोल्यूटेड शहरों में से 13 सिटीज, सिर्फ भारत की हैं। अपने चारों ओर पॉल्यूशन को देखकर क्या आपने कभी सोचा है कि आने वाले 50 साल बाद इंडिया का एनवायरमेंट कैसा होगा। एक्चुअली, जब भी पॉल्यूशन की बात आती है, तो सबसे ज्यादा प्लास्टिक बैग्स, bottles और पॉलिथीन को टारगेट किया जाता है। लेकिन शायद आपको पता नहीं है कि भारत की 90% प्लास्टिक की बोतलें रीसायकल हो जाती हैं।
तो फिर और क्या है, जिसकी वजह से हमारे ocean में इतना प्लास्टिक इकट्ठा हो रहा है। यह पॉलीफाइबर है, यानी प्लास्टिक के डिफरेंट टाइप, जैसे कि पॉलिएस्टर, नायलॉन, एक्रिलिक, और कई दूसरे सिंथेटिक फाइबर। आज पॉल्यूशन का एक बड़ा कारण पॉलीफाइबर है, जो न सिर्फ हमारे आसपास, बल्कि यह हमारी बॉडी में भी पहुंच चुका है। पॉलीफाइबर बहुत ज्यादा combustible यानी ज्वलनशील है, और इसलिए इसमें आग न पकड़ने वाले केमिकल मिलाए जाते हैं, जो कैंसर जैसी भयानक बीमारियों का कारण हैं। पॉलीफाइबर बायोडिग्रेडेबल नहीं है, बावजूद इसके, यह दुनिया में सबसे ज्यादा यूज होने वाला clothing fiber है, क्योंकि यह बहुत सस्ता है। शायद आपको पता न हो, लेकिन 1 साल में, दुनिया के 85 परसेंट कपड़े, कचरे के गढ्ढों में चले जाते हैं। हम जितनी पॉलीफाइबर यूज करते हैं, उसमें से 15% से भी कम रिसाइकिल होती है यानी बाकी पॉलीफाइबर, कचरा बनकर हमारे ocean में इकट्ठा हो रही है। हम daily basis, पर कपड़े धोते हैं और यह फाइबर पानी के जरिए, जमीन या समुद्र में जा रही है। जरूरी नहीं कि सिर्फ पानी, बल्कि अक्सर आपने भी देखा होगा कि कपड़ों का फाइबर, माइक्रोफाइबर में टूट कर इधर-उधर बिखरता है।
तो क्या इसके लिए हमें कपड़े खरीदना बंद कर देना चाहिए? हम चाहकर भी, ऐसा कभी नहीं कर पाएंगे, क्योंकि ये, हम सब, की लाइफ का एक क्रूशियल पार्ट है। लेकिन हां, Organic Cotton, Kapok, SILK, NATURAL HEMP और ORGANIC LINEN जैसे कई alternatives हैं, जो पॉलीफाइबर को रिप्लेस कर सकते हैं। इन फाइबर से बने कपड़े ज्यादा महंगे नहीं हैं, लेकिन अगर इनकी डिमांड बढ़ती है, तो ये भी पॉलीफाइबर की तरह सस्ते हो सकते हैं! नेचुरल फाइबर की ज्यादा प्रोडक्शन से किसानों की इनकम बढ़ेगी, जिससे एग्रीकल्चर सेक्टर भी ग्रो करेगा। सो, इस नेशनल पॉल्यूशन डे par आप में से कितने लोग, अपने वॉडरोब के पॉलीफाइबर को नेचुरल फाइबर से से रिप्लेस करना चाहेंगे? कोशिश करें कि बच्चों को, कम से कम 15 साल तक पॉलीफाइबर के कपड़े न पहनाएं, क्योंकि बचपन में कमजोर इम्यून सिस्टम की वजह से पॉलीफाइबर में मौजूद डेंजरस केमिकल, उन्हें ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं। देश की डेवलपमेंट के लिए industrialisation बहुत जरूरी है और सरकार ने भी, पॉल्यूशन को देखते हुए, इंडस्ट्रीज के लिए कई नियम-कानून बनाए हैं, लेकिन भ्रष्टाचार या जल्दी पैसा कमाने की होड़ में हमारा इंडस्ट्रियल सेक्टर उन नॉर्म्स को फॉलो नहीं करता। अगर हम एक सेफ और नॉन पॉल्यूटेड नेचर अपनी फ्यूचर जेनरेशन को देना चाहते हैं, तो सिर्फ सरकार को नहीं, बल्कि हर कॉरपोरेट हाउस, इंडस्ट्री और हर नागरिक को अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी। “Environment is life, pollution is death. Let us save our environment from getting poisoned with pollution.”